Tuesday, September 7, 2010

एक रात

कल रात एक जाम के ऊपर 
उनसे मुलाक़ात हुई 
आँखों से कुछ लफ्ज़ कहे
हर लफ्ज़ में एक बात हुई

अजनबी सी शक्सियत थी 
अजनबी रहने की दरकार हुई
एक कांपती सी लोह थी
कांपती बातों की ज़ंजीर हुई

उस एक पल की जैसे साज़िश थी 
खुद में ज़िन्दगी समेटने की 
और उस एक पल से लिपट जाने की 
आरजू भी खूब हुई

इस रात का कोई अंजाम ना हो
दिल की यह फरियाद हुई
कुछ में बहुत कुछ कहने की तम्मना 
लफ़्ज़ों से अनजान, जस्बातों में हर बात हुई

एक कशिश सी ख्वाब बनके
कुछ ऐसे ज़ेहन में उतर गयी
उस रात में जैसे क़ैद सारी ख्वाहिशें 
बस यादें बन महबूब हुई