कल रात एक जाम के ऊपर
उनसे मुलाक़ात हुई
आँखों से कुछ लफ्ज़ कहे
हर लफ्ज़ में एक बात हुई
अजनबी सी शक्सियत थी
अजनबी रहने की दरकार हुई
एक कांपती सी लोह थी
कांपती बातों की ज़ंजीर हुई
उस एक पल की जैसे साज़िश थी
खुद में ज़िन्दगी समेटने की
और उस एक पल से लिपट जाने की
आरजू भी खूब हुई
इस रात का कोई अंजाम ना हो
दिल की यह फरियाद हुई
कुछ में बहुत कुछ कहने की तम्मना
लफ़्ज़ों से अनजान, जस्बातों में हर बात हुई
एक कशिश सी ख्वाब बनके
कुछ ऐसे ज़ेहन में उतर गयी
उस रात में जैसे क़ैद सारी ख्वाहिशें
बस यादें बन महबूब हुई
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